Full description not available
S**T
Sooooo good
You would love it only when you like uttrakhand and it's culture.. for me it is really a Gold.. detailed and simple travelogue.
R**A
Amazing
बहुत सालो बाद इतना अच्छा यात्रा वृतांत पढ़ने को मिला। बहुत ही अच्छी पुस्तक है जो आपको घर बैठे बैठे धारचूला मुन्स्यारी जैसे सीमांत गाँवों की संस्कृति और सभ्यता से परिचय करवाएगी। इस किताब को पढ़े हुए १ महीने से ज़्यादा समय हो गया है पर मन जैसे सुदूर हिमालय क्षेत्र में ही अटक कर रह गया है। मैंने जून२०२२ में धारचूला मुन्स्यारी की यात्रा की थी और तभी से वो जगह दिल में बस गई है। इस किताब को पढ़ने के बाद फिर से महीनों तक उस जगह पे खो जाने को मन करता है। ये मेरा किसी पुस्तक के लिए लिखा गया पहला रिव्यू है। वैसे तो इससे पहले भी बहुत से देसी और विदेशी लेखकों की रचनाएँ पढ़ी है और बहुत सी फेवरेट भी है पर इस किताब की बात ही कुछ और है। मैंने ख़ुद पढ़ने के बाद अपनी बहन को ये पढ़ने को दी, अब इंतज़ार है कि वो कब मुझे ये किताब वापिस करे और मैं फिर से इसे पढू।वैसे इससे ज़्यादा और क्या ही तारीफ़ होगी इस किताब की कि मैंने ये तब पढ़ी जब मेरा बेटा सिर्फ़ ७ महीने का था और मैं मायके में थी, जो भी टाइम ख़ुद के लिए बचाती थी पूरे दिन उसे इसे पढ़ने में लगा देती थी।अद्भुत अनुभव।
S**H
शौका समुदाय और सुदूर हिमालय की ३ घाटियों का ज़मीनी अनुभव
शौका समुदाय और सुदूर हिमालय की ३ घाटियों का ज़मीनी अनुभव।हालांकि ये यात्रा 1995 या 1996 में की गई थी लेकिन आज के समय में भी उतनी ही जानकारी भरी और अनोखी लगती है जैसे कोई भी पहली बार इस समुदाय या इस इलाके की बात सुन रहा हो।देख सकते हैं कि दारमा घाटी पर आजकल अनेक यूट्यूब videos होने के बाद भी इस किताब के रिव्यू सीधा पाठकों के दिल से निकले हैं।अच्छी किताब और सभी को पढ़नी चाहिए।
G**I
बहुत ही अच्छी यात्रा वृतांत
लेखक से जिस प्रकार से भारत के सीमांत क्षेत्रों की एवं बर्फ बारी से साल में कई माह तक कटे क्षेत्रों की यात्रा की है वो भी उस समय जब ट्रैवल के लिए ना संसाधन इतने थे ना सड़के, सब जगह पैदल यात्रा एवं उन जन जातियों के rituals एवं उनके अपनत्व को बहुत ही खूबसूरती से शब्दों मे पिरोया है
S**I
बेहतरीन यात्रा वृत्तांत में से एक
अशोक पांडे जी ने 1990 से लेकर 2003 के बीच खुद और ऑस्ट्रियाई मानवशास्त्री एवं शोधकर्ता सबीने द्वारा उत्तराखंड की दारमा व्यांस और चौदास घाटियों के बीच रहने वाली रं या शौका जनजाति की लोकगाथाओं और उनकी परंपराओं पर शोधकार्य के दौरान की गई यात्रा को लिपिबद्ध किया है। उनकी यात्रा एक छोटे और पुराने पहाड़ी कस्बे धारचूला से शुरू होकर धौली गंगा नदी के साथ साथ चढ़ते हुए सिन ला दर्रे को पार करके जौलिंगकौक और फिर काली नदी के साथ लौटते हुए कालापानी और नेपाल के सरहदी इलाके से होते हुए वापस पूरी होती है। दोनों नदियों के साथ चढ़ते जाने पर दारमा और व्यांस घाटियां मिलती हैं और इन दोनो के बीच चौदास घाटी है। इन्हीं घाटियों के में इस जनजाति के गांव बसे हुए हैं। रं का शाब्दिक अर्थ है बांह अर्थात बल। यह जनजाति अपने नाम के अनुरूप ही अत्यंत कठिन परिस्थितियों में भी जीवटता के साथ अपनी अनोखी और खूबसूरत सांस्कृतिक विरासत को अब तक संभाले हुए है। हर गांव के अपने देवता हैं और उनके बारे में प्रचलित मिथकीय कहानियां भी। ये कहानियां इनके पूर्वजों से आने वाली पीढ़ियों में स्थानांतरित होती रही हैं। अधिकतर रं लोगों के दो घर होते हैं सर्दियां आने पर वो निचले इलाकों के अपने घरों में रहने चले जाते हैं और गर्मियों में वापस अपने ऊपरी इलाके के घरों में वापस आकर फसलें उगाते हैं।तीनों घाटियों में सेब और अनाज से तैयार पारंपरिक हल्के नीले रंग की शराब च्यक्ती हर घर में मिलेगी जो किसी भी महंगी व्हिस्की के बराबर रखी जा सकती है। मुख्य भोजन मांस और घाटी में उगने वाली सब्जियां हैं। सामूहिक पूजा किसी उत्सव की तरह मनाई जाती है और इसमें आने वालें मेहमानों का खर्च भी एक तरह की सामूहिक रूप से वहन किया जाता है। इसे झुमखो परंपरा कहा जाता है। इस व्यवस्था में आने वाले मेहमान क्रमशः सौ और पच्चीस रुपए दो मदों में ग्राम सभा द्वारा नियुक्त व्यक्ति के पास जमा करते हैं। इन्हीं पैसों से गांवों को ऋण देना,महिलाओं को बिना ब्याज का ऋण देना मेहमानों के आतिथ्य आदि काम होते हैं।रं सभ्यता में बलि प्रथा है देवताओं पर अटूट विश्वास है और उन देवताओं से जुड़ी हुई असंख्य किवदंतियां भी जिन्हें पढ़ते हुए उत्सुकता और बढ़ती जाती है। किताब पढ़ते हुए इन तीनों घाटियों के दृश्य जैसे आंखों के सामने घूमने लगते हैं और आप भाव विभोर होते जाते हैं। घास के हरे सुकून देते मैदान बर्फ से ढकी ऊंची चोटियां और नदियों की रफ्तार आपको अपने साथ बहाती हुई ले चलती है और आप एक खूबसूरत लेकिन जटिल परिस्थितियों में रहने वाली जनजाति से परिचित होते हैं जिनकी भाषा रं-ल्वू की लिपि अब तक विकसित ना हो पाई है। शोध के बहाने एक बेहतरीन यात्रा वृत्तांत जिसको पढ़ के उत्तर भारत की जटिल और खूबसूरत भौगोलिक संरचना के साथ एक बेहतरीन जनजाति के बारे में खूब जानने को मिला।
A**R
अच्छी यात्रावृतांत
इस किताब को पढ़ते वक़्त लग रहा था कि रं कितने प्यारे होते होंगे जिनसे मेरा राबता नहीं हुआ अभी तक।ऐसा लग रहा था किताब पढ़ते वक्त जैसे शब्द ही प्रकृति और इंसानों के इतना क़रीब ले जा रही है।कई जगह ऐसा लगा जैसे साफ़ संस्कृति ,व्यवहार, संस्कार,लोककथाएँ और लोगों का ख़ूबसूरत साथ पहाड़ियों के उचाईं से बिल्कुल पानी की धारा की तरह दिमाग़ और दिल में उतर रही हो।अनुभव का एहसास है। एक तरह से लगता है लोककथाओं का ये एक बेहतरीन दस्तावेज भी है जिसके ज़रिए अगले कई साल के बाद भी लोग आसानी से धारचूला,तवाघाट,व्याँस,दारमा और चौंदास घाटी के ऐस पास के कई गाँव को शब्दों के मार्फ़त वहाँ की ज़िंदगी का एहसास कर पायेंगे।1950 के दशक में तिब्बत पर चिन के क़ब्ज़े से पहले लोग हर साल जाया करते थे और व्यापार करते थे। कई लोकगाथाओं का ज़िक्र है इस किताब में कुछ के सिरे लेखक को ख़ुद खुले हुए मिलते है। कई कथायें प्रकृति के क़रीब होती है तो कई कैरेक्टर के क़रीब लेकिन इन सब कथाओं की सुंदरता को बखूबी लेखक ने लिखा है। कैरेक्टर भी कमाल के है पूरी यात्रा के दौरान। पूरी किताब एक डाक्यूमेंट्री फ़िल्म के शक्ल में नज़र आती है।कुछ यात्राएँ आपके अंदर ठहर जाती है जिसका सफ़र रूहानी हो जाता है।पढ़िए समय निकाल कर 📖👏🏻
P**A
रोमांचक विवरण
दारमा, चौदांश और व्यांस घाटी के मूल निवासियों का विस्तृत वर्णन। उनकी इस रोचक पुस्तक को पढ़ कर ही मैं आदि कैलाश एवम ॐ पर्वत की यात्रा पर गया। यह कल्पना करना ही मुश्किल है कि 30 वर्ष पहले लेखक द्वारा पैदल इस भूभाग का भ्रमण किया गया होगा। इस पुस्तक का परिचय कराने के लिए "बारामासा" के संपादक राहुल कोटियाल जी भी आभार।
R**.
सुंदर और शानदार पुस्तक
ये पुस्तक यात्रा संस्मरण को इस तरीके से बयां करता है कि लगता है आप भी इसका हिस्सा बन गए हैं। मुख्यधारा से अलग एक प्राकृतिक क्षेत्र में जहां लोग अभी भी अपने जीने के लिए सरकारी और आधुनिक व्यवस्थाओं से दूर प्रकृति प्रदत्त चीजों के ऊपर निर्भर है और खुश रहते हैं में की गई यात्रा के माध्यम से लेखक हिंदुस्तान के तमाम उन जगहों और वहा के लोगों के विषय में सोचने को प्रेरित करते हैं जो देश की मुख्य धारा से नहीं जुड़े हैं, और जहां लोगो को छोटी से छोटी सुविधाओं के लिए (जो शहरों में आसानी से उपलब्ध है) कितना संघर्ष करना पड़ता होगा।
Trustpilot
4 days ago
1 month ago