Deewar Mein Ek Khidki Rahti Thi । दीवार में एक खिड़की रहती थी [ साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत उपन्यास ]
U**G
सुन्दर
दीवार मे एक खिड़की रहती थीविनोद कुमार शुक्लहिन्द युग्मइस उपन्यास को पढ़कर लिखना बिलकुल भी आसान नहीं, इसको पढ़ने के लिए भी मुझे ज्यादा वक्त लगा.कल्पनात्मक भी ऐसी जिसको पढ़के आप कह देंगे की यह सिर्फ शायद विनोद कुमार शुक्ल जी ही लिख सकते हैमैंने इनकी कविताएँ भी पढ़ी है उपन्यास पहला पढ़ायह एहससो की पुस्तक हैयह कहानी है रघुवर प्रसाद और सोनसी की रघुवर जो की गणित पढ़ाते है विद्यालय मे आना जाना हाथी, टेम्पो से हो जातादीवार मे जो खिड़की की बात है यह दोनों उस खिड़की से नदी, तालाब, पेड़ पहाड़ियों के संसार मे चले जातेबहुत जगह संवाद होता तो ऐसा प्रतीत होता ख़ुद से संवाद हो रहा है, दूसरे के बोलने से पहले, पहला समझ रहा है क्या बोला जा रहा हैकुछ पुस्तक सेबचपन से सुबह उठने पर उन्हें लगता रात उनके शरीर मे लगी रह गई हैदेरी नहीं जाती, देर होने का एहसास चला जाता हैबैठ जाना आत्म समर्पण जैसा होता है, पैदल बढ़ जाना जूझना जैसा हो सकता हैबाहर मैदान से थोड़ी जगह लेते और टेम्पो मे रख देते तो जगह बन जातीदोनों की समझदारी मे फर्क पड़ जाए तो मुश्किल होंगीआपस मे झगड़ा करते थे चुपचापहाथी के जाने से एक बड़ी सी जगह निकल आई थीदिन के विदा होने का बाहर से कुछ अधिक अंधेरा कमरे मे हो चुका थाबेटे की गृहस्थी की खटर पटर आँख मूंद सुनना सुख दे रहा थासडक पर चलते हुए डूबने का डर कतई नहीं लगेगाख़ुद का ओझल होना ख़ुद को पता नहीं चलता हो, दूसरे को पता चल जाता होउधार लेने का समय अब निकाल चुका है जब चुकता करने का समय निकाल जाता है तो उधार लेने का समय भी चला जाता हैपेड़ चले गए पर पेड़ का हरहराना अभी यही रह गया थानींद मे होती तो ख़ुद याद मे चली जाती, नींद मे उसे याद नहीं आती थी नींद मे वह याद को पा जाती थीपहले तालाब चुप था फिर छपाक बोला था, तालाब ने मछली का उछलना कहा होगाकमरे मे एकान्त इकठा हो गया हो जैसे एक एक क्षण जमा किया होयाद किया हुआ जो दुनिया मे है उससे अधिक भूला हुआ दुनिया मे थाऔर भी बहुत कुछ....एक पाठक की कलम सेCA CS उत्कर्ष गर्ग
K**.
कहानी जो आपको जीवन की खुबसूरती से अवगत करायेगा.!
विनोद कुमार शुक्ल की कहानी "दीवार में एक खिड़की रहती थी" एक मधुर और शांत रचना है। यह रघुवर प्रसाद नामक एक कॉलेज प्राध्यापक और उनकी धर्मपत्नी सोनसी के जीवन की कहानी कहता है। वे एक छोटे से किराए के आवास में रहते हैं, जिसकी एक दीवार पर एक खिड़की है।यह खिड़की उनके लिए बस प्रकाश और वायु का स्रोत ही नहीं है, एक विशेष स्थान है। खिड़की के बाहर का नजारा, जिसमें एक सुंदर बगीचा और एक शांत तालाब आता है, उनके लिए एक अलग ही दुनिया का अनुभव कराता है। रघुवर और सोनसी यह खिड़की के समीप बैठकर बाहरी प्राकृतिक सौंदर्य में खो जाते हैं। यह खिड़की उनके दैनिक जीवन की साधारणताओं और कभी-कभी आने वाली चिंताओं से एक प्रकार का सुकून भरा पलायन प्रदान करती है।इस उपन्यास में कुछ अन्य पात्र भी हैं, जैसे एक लड़का जो हमेशा पेड़ पे रहता हैं, एक साधु और उसका हाथी जिससे रघुवर प्रसाद अपने घर से महाविद्यालय आना जाना करते हैं, और कुछ हल्के-फुल्के मनोरंजक घटनाएं भी होती हैं। पूरी कथा एक सहज और एक धीमी गति से बहती है, जहां किसी प्रकार की तीव्र नाटकीयता नहीं है। यह कृति जीवन के छोटे-छोटे आनंदों और साधारण क्षणों की सुंदरता को बड़ी ही सूक्ष्मता से चित्रित करती है।In short, "दीवार में एक खिड़की रहती थी" एक ऐसे साधारण दंपति की कहानी है जो अपनी सीमित परिस्थितियों में भी प्रेम और प्रकृति के माध्यम से प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। वह खिड़की उनके लिए एक कल्पनाशील स्थान है जो उन्हें वास्तविकता से परे एक शांतिपूर्ण और रमणीय संसार से जोड़ती है। यह उपन्यास मानवीय संबंधों और प्रकृति के प्रति एक गहरा सम्मान व्यक्त करता है।
V**T
Good
Good
N**I
Great read
Amazing book
A**R
Beautiful
Mesmerising
P**R
Must read if you love reading books
आप भी रघुवर प्रसाद के साथ उसके घर की खिड़की के बाहर वाली दुनिया में खो जाओगे।
R**N
Amazing book
A captivating book that transports you to an entirely new world—truly a dream read.
M**O
टाइम खराब करने वाली कहानी
काफी सुना इस उपन्यास के बारे मैं आज से पढूंगा।अफसोस इसको साहित्य अकादमी पुरस्कार किस लिए मिला पहली किताब जिसमें मुझे underline करने लायक कुछ नहीं मिला 205 पेज तक कुछ नहीं ओर आगे भी नहीं होगा मुझे लगता है ये कहानी ऐसे ही लिख दी गई कुछ भी नहीं है जितना इसको प्रमोट किया गया है ।कुछ दम नहीं कहानी मैं लेखक वही वही दोहराता है बसहाथी से कोई काम पर जायेगा वो भी रोज आठ किलोमीटरक्या यार कुछ भी टाइम खराब किया
ترست بايلوت
منذ أسبوعين
منذ شهر